दिनकर की कृतियां राष्ट्र की एकता में सहायक - प्रो. सदानंद शाही



विविधता का सम्मान करने वाला है एकता का नायक होता है – प्रो. अवधेश प्रधान

दिनकर की कृतियां राष्ट्र की एकता में सहायक -  प्रो. सदानंद शाही

 

बीचयूं। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के सरदार वल्लभ भाई पटेल छात्रावास में राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की जयंती के अवसर पर दिनकर जयंती समारोह का आयोजन किया गया। इस अवसर पर कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में हिंदी विभाग, बीएचयू के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. सदानंद शाही एवं मुख्य अतिथि के तौर पर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र अधिष्ठाता एवं वर्तमान में गोपाल नारायण सिंह विश्वविद्यालय, सासाराम के कुलपति, प्रख्यात नेत्र सर्जन प्रो. महेंद्र कुमार सिंह उपस्थित रहे। कार्यक्रम की अध्यक्षता हिंदी विभाग, बीएचयू से अवकाश प्राप्त प्रो. अवधेश प्रधान ने किया। कार्यक्रम का शुभारम्भ मालवीय जी और दिनकर जी के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर हुआ, जिसमें वक्ताओं के साथ विश्वविद्यालय के मुख्य सुरक्षाधिकारी प्रो. अभिमन्यु सिंह भी मौजूद रहे।

कार्यक्रम को संबोधित करते मुख्य वक्ता प्रो. शाही ने कहा कि ज्यादातर मौकों पर दिनकर जयंती पर हम उनकी काव्य रचनाओं तक ही गोष्ठियाँ सीमित कर लेते हैं, जबकि दिनकर ने खुद कहा है कि किसी व्यक्ति को उनकी सिर्फ एक रचना का अध्ययन करना हो तो वह ‘संस्कृति के चार अध्याय’ पढ़े। उन्होंने कहा कि दिनकर की संस्कृति के चार अध्याय एक ऐसी कृति है जिसने भारत की एकता में वृहत्तर योगदान दिया। भारत और भारतीय संस्कृति को जानने का मार्ग संस्कृति के चार अध्याय में मिलता है। उनकी कृतियों ने भारतीय समाज की रूढ़िवादिता पर कुठाराघात किया। वे कहते थेभारत की एकता और स्वतंत्रता एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। यदि देश की एकता खिड़की के रास्ते से देश रुपी घर छोड़कर निकल गई तो स्वतंत्रता को मुख्य दरवाजे से निकलते देर न लगेगी। उन्होंने कहा की दिनकर की रचनाओं से सामान्य आदमी भी जुड़ता था रश्मिरथी के अंश ‘तेजस्वी सम्मान खोजते नहीं गोत्र बतला केपाते हैं जग में प्रशस्ति अपना करतब दिखला के’ को सुनाते हुए उन्होंने कहा कि यह पंक्तियाँ किसी शिक्षक के कारण नहीं बल्कि बचपन में घर-खेत पर काम करने वाले एक सहयोगी के कारण उन्हें याद हैं। वे काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कुलगीत की पंक्तियों ‘प्रतीची-प्राची का मेल सुंदर’ की ही तरह आधुनिक और प्राचीन संस्कृति में से एक को अपनाने के विवाद के बीच समन्वय की संस्कृति अपनाने की सलाह देते थे। उन्होंने दिनकर की प्रसिद्ध – ‘कविता सिंहासन खाली करो कि जनता आती है’ का पाठ करते हुए कहा कि यह कविता पुनर्नवा है, यह एक ऐसी रचना है जो हर दौर में अपनी प्रासंगिकता खोज लेती है।

इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित गोपाल नारायण सिंह विश्वविद्यालयसासाराम बिहार के कुलपति प्रो० महेंद्र कुमार सिंह ने कहा दिनकर संपूर्ण मानवीयता के लिए प्रेरणास्रोत थे। उनकी रचनाएं युगों-युगों तक मानव को जीवन जीने का सलीका देती रहेंगी। उन्होंने इस अवसर पर दिनकर की श्रेष्ठतम काव्य रचना उर्वशी के विभिन्न सर्गों का पाठ करते हुए उसके मर्म को समझाया। उन्होंने कहा कि मनुष्य की मूल प्रवृत्ति के उलट युवा अवस्था में दिनकर वीर रस से युक्त ओजपूर्ण कविताएँ रचते रहे एवं प्रौढ़ावस्था में उर्वशी के जरिये उन्होंने प्रेम और श्रृंगार रस की रचना रची। उन्होंने ‌हृदय और बुद्धि के बीच हृदय की बात सुनने पर बल दिया। ‘उर्वशी’ में उन्होंने जैसे उर्वशी व पुरुरवा के प्रेम का वर्णन किया है वह अतुलनीय है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे हिन्दी विभाग, बीएचयू के पूर्व प्राध्यापक प्रो. अवधेश प्रधान ने कहा कि दिनकर सम्मोहक व्यक्तित्व वाले पुरुष थे। उन्होंने कहा कि मैथिलीशरण गुप्त, रामधारी सिंह दिनकर और हरिवंश राय बच्चन ये हिंदी कविता के ऐसे शिखर है जिन्हें जितना हिंदी भाषी उत्तर भारतीयों ने किया उतना ही मान उन्हें दक्षिण भारत में मिला। दिनकर ने तो अंतिम कविता पाठ वहीं किया और अंतिम साँसे भी तिरुपति की छाँव में ली। उन्होंने जीवन के क्षण-क्षण का उपयोग राष्ट्र निर्माण में किया। उनके साहित्य में विश्व भर की समस्याओं का हल मिलता है। वह कहते थे उनकी कविताओं का रंग गाँधी के सफ़ेद रंग और मार्क्स के लाल रंग को मिलाकर बनता है। वो लिखते भी हैं- “क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल होउसको क्या जो दंतहीनविषरहितविनीतसरल हो।” वह अपने साहित्य में भले ही लंबे वाक्यों का प्रयोग किया परंतु वे वाक्य हमें बांधे रखते हैं। उन्होंने स्वतंत्रता के पूर्व और स्वतंत्रता के बाद समाज की जरूरत के अनुसार साहित्य की रचना की। प्रो० प्रधान ने दिनकर के दूरदर्शी व्यक्तित्व का जिक्र करते हुए प्रसंग सुनाया कि एक कवि सम्मेलन करके सीढ़ियों से उतरते वक्त नेहरू के लड़खड़ाने पर दिनकर के कंधे का सहारा लेने पर दिनकर ने कहा था-जब-जब राजनीति लड़खड़ाती है तब साहित्य ही सहारा देता है। वे समाजवाद के प्रबल समर्थक थे। उन्होंने कहा कि गाँधी इस आजाद भारत के डिज़ाइनर थे और नेहरु इंजिनियर, भूल इंजिनियरों से हो सकती है डिज़ाइन तो हमेशा से अच्छा ही बनता है। नेहरु को याद था कौन-कौन आज़ादी के सिपाही रहे हैं, उन्होंने हर विचारधारा के लोगों को साथ लेकर राष्ट्रनिर्माण का काम किया। विविधता का सम्मान करने वाला है एकता का नायक होता है।

इस अवसर पर स्वागत उद्बोधन एवं धन्यवाद ज्ञापन छात्रावास के संरक्षक डॉ. शैलेन्द्र कुमार सिंह ने किया, कार्यक्रम का संचालन हर्षित श्याम ने किया। कार्यक्रम में प्रो. अभिमन्यु सिंह, प्रो. आर एन राय, डॉ. अशोक कुमार ज्योति, डॉ. स्वर्ण सुमन, प्रमोद अग्रवाल आदि मौजूद रहे। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे। कार्यक्रम के आयोजन में अंकित कुमार, विजय पाठक, रंजीत राय, भंवरलाल, रवि कुमार राय और ओम प्रकाश आदि की महत्वपूर्ण भूमिका रही।


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